रांची के सड़कों के किनारे पनप रहा है पुनर्नवा का पौधा 1

किडनी के मरीजों में होता है इसका उपयोग 1

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नितीश प्रियदर्शी















रांची के सड़कों के किनारे इस समय औषधीय पोधौं का राजा पुनर्नवा कुछ कुछ स्थानों पर पाया जा रहा है 1 अगर जानकारों की माने तो इस पौधे का इस्तेमाल उन मरीजों पर ज्यादा किया जाता है जो गुर्दे (किडनी ) की बीमारी से ग्रसित हैं1 रांची की मिट्टी, चट्टानें एवं जलवायु इस पौधे के लिये काफी उपयूक्त हैं 1 बहुत सारी निजी संस्थाएँ इन पौधों को औषधि के रूप में ऊँचे दामों पर बेचती हैं1 रांची में ये खासकर करमटोली , मोरहाबादी आदि स्थानों में लेखक को ये पौधा दिखा है1

पुनर्नवा पूरे भारत में खासकर गर्म प्रदेशों में बहुतायत से प्राप्त होता है। हर साल बारिश के मौसम में नए पौधे निकलना और गर्मी के मौसम में सूख जाना इसकी खासियत होती है।

पुनर्नवा एक आयुर्वेदिक औषधि है। इस विशेषणात्मक उक्ति की पृष्ठभूमि पूर्णतः वैज्ञानिक है । पुनर्नवा का पौधा जब सूख जाता है तो वर्षा ऋतु आने पर इन से शाखाएँ पुनः फूट पड़ती हैं और पौधा अपनी मृत जीर्ण-शीर्णावस्था से दुबारा नया जीवन प्राप्त कर लेता है । इस विलक्षणता के कारण ही इसे ऋषिगणों ने पुनर्नवा नाम दिया है । इसे शोथहीन व गदहपूरना भी कहते हैं । पुनर्नवा के नामों के संबंध में भारी मतभेद रहा है। भारत के भिन्न-भिन्न भागों में तीन अलग-अलग प्रकार के पौधे पुनर्नवा नाम से जाने जाते हैं । ये हैं-बोअरहेविया डिफ्यूजा, इरेक्टा तथा रीपेण्डा । आय.सी.एम.आर. के वैज्ञानिकों ने वानस्पतिकी के क्षेत्र में शोधकर 'मेडीसिनल प्लाण्ट्स ऑफ इण्डिया' नामक ग्रंथ में इस विषय पर लिखकर काफी कुछ भ्रम को मिटाया है । उनके अनुसार बोअरहेविया डिफ्यूजा जिसके पुष्प श्वेत होते हैं औषधीय पौधे की श्रेणी में आते हैं। पुनर्नवा खाने में ठंडी, सूखी और हल्की होती है।
रक्त पुनर्नवा एक सामान्य पायी जाने वाली घास है जो सर्वत्र सड़कों के किनारे उगी फैली हुई मिलती है । श्वेत पुनर्नवा रक्त वाली प्रजाति से बहुत कम सुलभ है इसलिए श्वेत औषधीय प्रजाति में रक्त पुनर्नवा की अक्सर मिलावट कर दी जाती है ।


इस औषधि का मुख्य औषधीय घटक एक प्रकार का एल्केलायड है, जिसे पुनर्नवा कहा गया है । इसकी मात्रा जड़ में लगभग 0.04 प्रतिशत होती है । अन्य एल्केलायड्स की मात्रा लगभग 6.5 प्रतिशत होती है । पुनर्नवा के जल में न घुल पाने वाले भाग में स्टेरॉन पाए गए हैं, जिनमें बीटा-साइटोस्टीराल और एल्फा-टू साईटोस्टीराल प्रमुख है । इसके निष्कर्ष में एक ओषजन युक्त पदार्थ ऐसेण्टाइन भी मिला है । इसके अतिरिक्त कुछ महत्त्वपूर्ण् कार्बनिक अम्ल तथा लवण भी पाए जाते हैं । अम्लों में स्टायरिक तथा पामिटिक अम्ल एवं लवणों में पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट एवं क्लोराइड प्रमुख हैं । इन्हीं के कारण सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने की सामर्थ्य बढ़ती है ।


जानकारों के अनुसार, यह पीलिया, पेट के रोग, खून के विकार, सूजन, सूजाक (गिनोरिया), मूत्राल्पता (पेशाब का कम आना), बुखार तथा मोटापा आदि विकारों को नष्ट करती है। पुनर्नवा का प्रयोग जलोदर (पेट में पानी का भरना), मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी या जलन), घाव की सूजन, श्वास (दमा), हृदय (दिल) रोग, बेरी-बेरी, यकृत (जिगर) रोग, खांसी, विष (जहर) के दुष्प्रभाव को दूर करता है।


आज भी बहुत कम लोग इस पौधे की चमत्कारी गुणों को जानते हैं 1 लेखक ने जब इस पौधे की तस्वीर उतरने की कोशिश की तो कई लोग कोतुहल वश इसकी जानकारी चाही 1 हो सकता है ये आपके घरों के आसपास ही हो और आपको इसकी जानकारी न हो 1 अगर आप इनको पहचान लेते हैं तो इसे बचाने की कोशिश करें ताकि अगले वर्ष बरसात में फिर से उग जाएँ 1 झारखण्ड में वैसे भी औषधीय पौधों का भंडार है जिनकी विस्तृत जानकारी और संगरक्षण जरुरी है1









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