झारखण्ड एवं बिहार के भूमिगत जल में फैल रहा है आर्सेनिक का जहर I


बहुत सारे छेत्रों में अपना प्रभाव दिखा रहा है I
द्वारा
डा. नितीश प्रियदर्शी




आर्सेनिक शब्द का नाम आते ही नेपोलियन की याद आती है जिनके बारे में यह कहा जाता है की उनको आर्सेनिक का जहर देकर मारा गया था I
देश के कई भागों में आर्सेनिक युक्त जल पीने के कारण लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड तथा बिहार के अनेक गांवों में भूजल में आर्सेनिक तत्व पाए जाने की पुष्टि वैज्ञानिकों ने की है।
पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद, वर्धमान, नाडिया, हावड़ा, हुगली, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और कोलकाता जिलों के लोग इस पानी को पीने से विभिन्न रोगों के शिकार हो रहे हैं।
पूरे विशव मे करीब बीस मिलियन लोग इससे प्रभावित है , कई तरीकों से इससे उत्पन्न हुये रोगों से निजात पाने की चेष्टा की गयी लेकिन अभी तक कोई ठॊस परिणाम सामने नही आये हैं ।

आज पश्चिम बंगाल के कई जिले इस जहर से प्रभावित हैं. वहां के भूमिगत जलों में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तिथि तक पहुँच चुकी है I हजारों लोग इससे प्रभावित है I
बिहार एवं झारखण्ड के भी कई जगहों पर यह जहर यहाँ के भूमिगत जल में तेजी से फैल रहा है. तथा हजारों लोग इस आर्सेनिक के जहर से त्रस्त हैं I धरती की सतही जल में इसकी उपस्थिति लगभग नगण्य होती है किन्तु जैसे जैसे पृथ्वी के भीतर की और बढ़ते हैं एवं जल पाइराइट नामक खनिज के संपर्क में रहता है आर्सेनिक की सांद्रता बढ़ती जाती है I
दोनों राज्यों में आर्सेनिक की मात्रा १० पि. पि. बी. (पार्ट्स पर बिलियन ) की संख्या को पर कर चूका है तथा अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है I झारखण्ड में सबसे ज्यादा प्रभावित जगह है झारखंड के पूर्वी-पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, कोडरमा, हजारीबाग, साहेबगंज, राजमहल, चतरा, दुमका, पाकुड़, उधवा, आदि जिले पूरी तरह आर्सेनिक की चपेट में हैं। यहाँ पर आर्सेनिक की मात्रा भूमिगत जल में खतरनाक स्तिथि तक पहुँच चुकी है एवं कई लोग इस प्रदूषित जल को पीने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग से त्रस्त हैं I कई लोग तो पेट सम्भंदित बिमारिओं की भी शिकायत की है I मानव शारीर में उपस्थित आर्सेनिक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के लिए घातक है I इसके अलावा मांसपेशिओं की कमजोरी, भूख न लगना, जी मिचलाना, जैसी बिमारियों की संभावना बढ़ सकती है I आरेसेनिक संक्रमण से त्वचा का कैन्सर , केरोटोसिस [keratoses] जैसी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं ।
वैसे तो झारखण्ड से होकर बहने वाली दामोदर एवं स्वर्णरेखा नदी भी इस जहर के प्रभाव से अछूती नहीं है. इसका प्रभाव धीरे धीरे अब दिखने लगा है I सवर्णरेखा एवं दामोदर में इस जहर का स्रोत यहाँ पर उपस्थित विभिन्न उद्योग और खनिज की खानें हैं I झारखण्ड में घाटशिला के पास भी कुछ भूमिगत जालों में आर्सेनिक मिलने की सुचना है I

बिहार में सबसे ज्यादा प्रभावित छेत्र पटना , भोजपुर, वैशाली एवं भागलपुर जिले हैं I यहाँ पर आर्सेनिक की मात्रा १० पि.पि.बी. को पार कर चुकी है I यह सारे छेत्र गंगा नदी के छेत्र हैं I सबसे खतरनाक बात यह है की यहाँ के भूमिगत जलों में आर्सेनिक की मात्रा मौसम के अनुसार बदलती है I पटना के पास मनेर इस जहर से सबसे ज्यादा प्रभावित है जहाँ आर्सेनिक की मात्रा ३० पि.पि.बी. से ६० पि.पि.बी. तक पहुँच चुकी है I भोजपुर के पाण्डेय टोला एवं बरहरा में आर्सेनिक की सांद्रता १८६१ पि.पि.बी. तक पहुँच चुकी है I भागलपुर के पास कहलगांव में आर्सेनिक का जहर सबसे ज्यादा पाया गया है I दूसरा प्रभावित छेत्र है सबौर और सुल्तानगंज I मनेर में जहाँ आर्सेनिक ६० फीट की गहराई वाले कुऐं में ही मिल जा रहा है वहीँ भोजपुर में १५० फीट नीचे में आर्सेनिक मिल रहा
है I
समस्तीपुर के एक गाँव हराइल छापर में भूजल के एक नमूने में आर्सेनिक की मात्रा 2100 ppb पाई गई जो कि सर्वाधिक है।उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पेयजल में 10 ppb की मानक मात्रा तय की है जबकि भारत सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार अधिकतम सुरक्षित मात्रा 50 ppb मानी जाती है।

बिहार के अन्य प्रभावित छेत्र हें बक्सर, खगरिया,कटिहार, छपरा, मुंगेर एवं दरभंगा I
आर्सेनिक का जहर अगर इसी तरह बढ़ता रहा तो दोनों राज्यों की स्थिती और भयावह हो जायगी I

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